एसा लगता है कि जैसे कुछ न कुछ होने का है
क्या बचा है पास अपने जिसका डर खोने का है
क्यूं तस्लली दे रहे हैं झूठी अपने आपको
जागने के वक्त को हम कह रहे सोने का है
इस तरफ भी गौर करने से भला हो देह का
तन तो हमने धो लिए है मन बचा धोने का है
जब बुरा कहने लगे खुद अपनी यूँ औलाद भी
बोझ इससे और बढ़ कर तू बता ढोने का है
तू समझाता होगा"आज़र" वो पिंघल ही जाएगा
मुझको तो लगता नहीं की फायदा रोने का है
तू समझता होगा"आज़र" वो पिंघल ही जाएगा
ReplyDeleteमुझको तो लगता नहीं की फायदा रोने का है
तू समझता होगा"आज़र" वो पिंघल ही जाएगा
ReplyDeleteमुझको तो लगता नहीं की फायदा रोने का है