मेरा सुझाव
मैं बीस वर्षों से देशहित में निम्नलिखित अपने विचारों से देशवासियों को अवगत करवाता आ रहा हूँ !
जब तक हम इन बातों पर अमल नहीं करेंगे देश का सुधार नहीं हो सकता !
मैं कई बार माननीय प्रधान मन्त्री जी को लिख चुका हूं लेकिन वही ढाक के तीन पात !
खुदगरजो इस देश को तुमने देखो कंगला कर डाला
तिरसठ साल से देश हमारा भूख गरीबी भोग रहा
उग्रवाद का रुप भयानक इक दिन एसा बरपेगा
बात समझ लो वक्त के रहते वक्त हाथ न आएगा
रोक लगा दो दस वर्षों तक शादी के इन उत्सव पर
बच्चे पैदा बन्द न होंगे देश कभी न सुधरेगा
पांच साल क्या ठेकेदारो सारी उम्र लगा देना
नसबन्दी अभियान चलाओ देश तभी कुछ सुधरेगा
बंगलादेशी या परदेसी बाहर निकालो देश से इनको
कुछ वोटो का लालच वरना नर्क बनाता जाएगा
पंडा ,मुल्ला,रागी.ईसा खेल रचाए बैठे हैं
खेल है इनका उल्टा-पुलटा देश के ठेकेदारो का
शर्म हया की सब सीमाऐं नेताओ ने तोड हैं दी
इक दूजे पे वार है करना अब जूते ओर चप्प्लों का
कानून बने इस देश मे एसा सब धर्मो पर लागू हो
बात समझ न आए, उसको देश मे हक नही रहने का
आपका
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
GHAZALS
Sunday, October 30, 2011
Wednesday, September 14, 2011
एसा लगता है कि जैसे ......
एसा लगता है कि जैसे कुछ न कुछ होने का है
क्या बचा है पास अपने जिसका डर खोने का है
क्यूं तस्लली दे रहे हैं झूठी अपने आपको
जागने के वक्त को हम कह रहे सोने का है
इस तरफ भी गौर करने से भला हो देह का
तन तो हमने धो लिए है मन बचा धोने का है
जब बुरा कहने लगे खुद अपनी यूँ औलाद भी
बोझ इससे और बढ़ कर तू बता ढोने का है
तू समझाता होगा"आज़र" वो पिंघल ही जाएगा
मुझको तो लगता नहीं की फायदा रोने का है
क्या बचा है पास अपने जिसका डर खोने का है
क्यूं तस्लली दे रहे हैं झूठी अपने आपको
जागने के वक्त को हम कह रहे सोने का है
इस तरफ भी गौर करने से भला हो देह का
तन तो हमने धो लिए है मन बचा धोने का है
जब बुरा कहने लगे खुद अपनी यूँ औलाद भी
बोझ इससे और बढ़ कर तू बता ढोने का है
तू समझाता होगा"आज़र" वो पिंघल ही जाएगा
मुझको तो लगता नहीं की फायदा रोने का है
Sunday, August 14, 2011
भारतीय नारी: ''देवी चौधरानी ''-प्रथम महिला आजादी सेनानी
भारतीय नारी: ''देवी चौधरानी ''-प्रथम महिला आजादी सेनानी: " ''देवी चौधरानी ''-प्रथम महिला आजादी सेनानी भारत माँ की बेटी थी ''देवी चौधरानी '' आजादी हित बनी प्रथम महिला सेनानी , संन्यासी विद्र..."
Wednesday, July 27, 2011
यूं मुस्करा तुम मिले
यूं मुस्करा तुम मिले इतने दिनो के बाद
आएं हैं दिन बहार के इतने दिनो के बाद
शौहरत कि चाह लोगों को उर्यां थी कर गई
लेकिन वो राज़ अब खुले इतने दिनो के बाद
सहरा में क्या जमाल है चंदन के पेड़ पर
शाखों पे फ़ूल हैं खिले इतने दिनो के बाद
चंचल हवाएं शोख-सीं पानी पे तिर गईं
थे दो किनारे यूं मिले इतने दिनो के बाद
"आज़र" तमाम रात मैं सोया हूं चैन से
सपने सुहाने आए थे इतने दिनो के बाद
Saturday, May 21, 2011
चर्चा मंच: "साथियों को पहुँचे मेरा प्यार भरा सलाम " (चर्चा मंच-519)
राज दुलारे
मम्मी-पापा का तू राजा
दोनों का है कहना माने
आज करेंगे सैर-स्पाटा
ले चलते हैं तुझे घुमाने
चुप हो जा तू मेरे बच्चे
आजा मेरे राज दुलारे
रोना अच्छी बात नहीं है
जो कहता है ले दूं प्यारे
इतने सारे सुंदर-सुंदर
खेल-खिलोने तेरे पास
और भी तुझ को ले देता हूँ
धरती ,अम्बर, चाँद, सितारे
आज्ञाकारी अच्छा बच्चा
जल्दी आ स्नान तू कर ले
स्कूल नहीं क्या जाने तूने
मम्मी तेरी तुझे पुकारे
बस्ते में जल्दी से रख ले
पुस्तक,कापी, पैन्सिल, पैन
बस भी लेने आ गई तुझको
बस वाला भी हार्न मारे
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र "
Saturday, March 19, 2011
होली का त्यौहार
संग में अपने खुशियाँ लाया होली का त्यौहार
बढ़- चढ़ कर हम आगे आएं बांटे सबको प्यार
रंग गुलाबी, नीले , पीले देते हैं संदेशा
इक दूजे के संग में जोड़ो अपने दिल के तार
फागुन ऋत में उपवन महकें और मुसाकएं कलियाँ
भीनी -भीनी खुशबू महके झूमें देखो खार
खूब मिठाई सब जन खाते ,पकते घर पकवान
ढोल-नगारे बजते सजनो नाचें मिल कर यार
"आज़र"अपने हाथ उठा कर कुदरत से हम मांगे
हरा-भरा -सा बना रहे यह सुंदर -सा संसार
बढ़- चढ़ कर हम आगे आएं बांटे सबको प्यार
रंग गुलाबी, नीले , पीले देते हैं संदेशा
इक दूजे के संग में जोड़ो अपने दिल के तार
फागुन ऋत में उपवन महकें और मुसाकएं कलियाँ
भीनी -भीनी खुशबू महके झूमें देखो खार
खूब मिठाई सब जन खाते ,पकते घर पकवान
ढोल-नगारे बजते सजनो नाचें मिल कर यार
"आज़र"अपने हाथ उठा कर कुदरत से हम मांगे
हरा-भरा -सा बना रहे यह सुंदर -सा संसार
Friday, January 14, 2011
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